जिन दोषियों के सभी कानूनी विकल्प खत्म, उन्हें दी जा सकती है फांसी : केंद्र सरकार


 


निर्भया के दोषियों की फांसी पर रोक के खिलाफ केंद्र की याचिका पर रविवार को विशेष सुनवाई के बाद दिल्ली हाईकोर्ट ने फैसला सुरक्षित रख लिया है। केंद्र सरकार की ओर से पेश सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा, जिन दोषियों के सभी कानूनी विकल्प खत्म हो गए हैं उन्हें फांसी दी जा सकती है। ऐसा कोई नियम नहीं है कि चारों को फांसी एकसाथ ही दी जाए। 
मेहता की इस दलील पर हाईकोर्ट के जज सुरेश कुमार कैत ने पूछा अगर दोषी चार हैं और दो के कानूनी विकल्प खत्म हो गए हैं, मगर दो के बचे हुए हुए हैं तो इस स्थिति में क्या होगा? जवाब में मेहता ने कहा, ऐसे में इन्हें फांसी दी जा सकती है।


वहीं, दोषियों की ओर से पेश वरिष्ठ वकील रेबेका जॉन ने अपना पक्ष रखते हुए कहा, दोषियों को मौत की सजा एक साथ दी गई है, तो उन्हें फांसी भी एक साथ दी जानी चाहिए। केंद्र दोषियों पर विलंब का आरोप लगा रहा है, जबकि वह खुद महज दो दिन पहले इस मामले में जागा है।


इससे पहले मेहता ने कहा, सुप्रीम कोर्ट के द्वारा जब तक एक अपराध के सभी दोषियों की अपील पर फैसला नहीं हो जाता, फांसी नहीं हो सकती है। हालांकि, गुनहगारों की अपील खारिज होने के बाद अलग-अलग फांसी हो सकती है। एक बार सुप्रीम कोर्ट दोषियों पर अंतिम फैसला सुना देता है तो उन्हें अलग-अलग फांसी दिए जाने में कोई बाधा नहीं है। 


सिर्फ विशेष याचिका लंबित होने पर ही टल सकती है फांसी, मगर दया याचिका पर लागू नहीं
मेहता ने जेल नियमों का हवाला देते हुए कहा, अगर सुप्रीम कोर्ट के समक्ष विशेष अनुमति याचिका (एसएलपी) आती है तो एक यही अंतिम कानूनी उपचार है जो फांसी टाल सकता है। दिल्ली कारागार नियमावली 2018 के मुताबिक, अगर किसी एक अपराधी की एसएलपी लंबित हो तो बाकी के दोषियों की फांसी भी स्थगित हो जाएगी। हालांकि, यह नियम दया याचिका के संबंध में लागू नहीं होता है। निचली अदालत ने इसी को आधार बनाते हुए सभी दोषियों की फांसी स्थगित कर दी।