शराब की तरह राशन भी तो बांटा जा सकता था


 


शिवराज सरकार ने जो दिलचस्पी शराब बेचने में दिखाई वह अकल्पनीय है। ठेकेदारों द्वारा सरेंडर की गई शराब दुकानों को सरकार ने न केवल अपने कर्मचारियों से चलवाई, बल्कि महिला कर्मचारियों को भी इस काम में लगा दिया गया। शराब पुलिस संरक्षण में बिकवाई गई। यह कितनी बड़ी विडंबना है कि जिस भारतीय संस्कृति में शराब को निषेध पेय माना गया है, उसे भारतीय संस्कृति की वाहक ‘भाजपा’ की सरकार खुद दुकानें खोलकर बांट रही हैं और जो महिलाएं अपने घरों में अपने पति से शराब पीने पर झगड़ा करती थी, वही महिलाएं स्वयं पिलाने का दायित्व निभा रही है। साथ ही ये महिलाएं जिस पुलिस को शिकायत करने का भय अपने पति को दिखाती थी, उन्हीं के साथ मिलकर वे स्वयं शराब पिलाने को मजबूर दिखाई दे रही है। बड़ा ही अजीब मंजर है ये। कर्मचारियों के लिए तो यह माना जा सकता है कि नौकरी जो न कराए वो कम है, लेकिन यह सरकार की व्यवस्था पर बड़ा प्रश्न चिन्ह है। कुछ दिनों पहले इसी तरह लोगों को राशन बांटा गया, तब न तो किसी पुरुष कर्मचारी की ड्यूटी लगाई गई न ही महिला की, यहां तक कि व्यवस्था बनाने पुलिस को भी नहीं लगाया गया। सब कुछ एक दुकानदार पर छोड़ दिया गया। इसका नतीजा यह निकला कि वास्तविक गरीबों को राशन मिला ही नहीं और लोगों ने वह राशन मनमाने ढंग से ग्रुप बनाकर अपनों-अपनों में बांट दिया और इस तरह सरकार की मेहरबानी पर न जाने कितने दानदाता रातों-रात सड़क पर उतर आए। सरकार क्या दारू की तरह ही राशन को अपने संरक्षण में नहीं बांट सकती थी। यदि ऐसा किया होता तो कई लोगों को और राहत मिल चुकी होती और राशन देने के बावजूद जो बदनामी सरकार को झेलना पड़ी उससे भी वह बच सकती थी।