मंदी की चपेट में अर्थव्यवस्था


- आलोक दुबे
प्रधान संपादक


कोरोना वायरस ने पूरी दुनिया की इकॉनामी पर बहुत बुरा असर डाला है। हमारा देश भी इससे अछूता नहीं है। करीब ढाई महीने के लॉकडाउन से हमारी अर्थव्यवस्था बुरी तरह प्रभावित हुई है। प्राइवेट सेक्टर में कर्मचारियों पर छंटनी की मार पड़ी है तो कई कंपनियों ने कर्मचारियों के वेतन में कटौती कर दी है।


काम-धंधे बंद होने से छोटे दुकानदार भी काफी प्रभावित हुए हैं और उनके यहां काम करने वाले आर्थिक तंगी से जूझ रहे हैं। बसें और ट्रेनें बंद होने से कई लोगों की रोजी-रोटी प्रभावित हुई है। इन्हीं सब परेशानियों के कारण ही श्रमिक वर्ग ने शहरों से पलायन किया है। जिस रोजी-रोटी के लिए उसने गांव छोड़ा था, उसी रोटी के लिए वह फिर गांव लौट रहा है। वैसे केंद्र सरकार ने अपनी तरफ से मदद के लिए कई कदम उठाए हैं। राज्य सरकारों और कुछ संगठनों ने भी लोगों की काफी मदद की है।


प्रवासी मजदूरों ने पलायन करते समय जरूर काफी परेशानियां झेली हैं। इस मुश्किल वक्त में अगर श्रमिकों की मदद के लिए उनकी कंपनियां और नियोक्ता आ जाते तो उनकी परेशानियां कुछ कम हो जातीं और इतनी बड़ी तादाद में पलायन नहीं होता। और पलायन के बाद कंपनियों के सामने यह नया संकट नहीं होता कि अब वे उत्पादन कैसे करें, क्योंकि श्रमिक पलायन कर गए हैं। अब कंपनियां श्रमिकों की कमी से जूझने वाली हैं। इस संकट का जल्द हल नहीं निकलने वाला। क्योंकि पलायन कर गए श्रमिक इतनी जल्दी वापस शहर नहीं लौटेंगे। अभी इन श्रमिकों के पैर में पड़े छाले इतना दर्द देंगे कि वे शहर की ओर कदम भी नहीं बढ़ा पाएंगे। श्रमिकों के पलायन से छोटे कुटीर उद्योग धंधे भी बंद हो गए हैं।


अब कंपनियों के सामने सबसे बड़ा संकट यह है कि वे श्रमिकों के मन में भरोसा कैसे जगाएं। उनमें उनके उज्जवल भविष्य के सपने कैसे जगाएं। जब तक ये दोनों काम कंपनियां नहीं करेंगी तब तक उन्हें श्रमिक संकट से जूझना पड़ेगा। अब कंपनियों को लाभ के धंधे के साथ मानवता के लिए भी कुछ करना पड़ेगा तभी वे निर्बाध रूप से चल सकेंगी। इस संकट की घड़ी में कुछ फिल्मी कलाकारों ने भी श्रमिकों की मदद के लिए हाथ बढ़ाए। वैसे कोरोना पर काफी हद तक काबू पाने के बाद अब सरकार ने लॉकडाउन में ढील देना शुरू कर दिया है। इससे आशा है कि अर्थव्यवस्था धीरे-धीरे पटरी पर लौट आएगी और लोगों के जीवन में फिर बहार आएगी।