उपचुनाव : सरगर्मी तेज


- आलोक दुबे
प्रधान संपादक


कांग्रेस जहां इन चुनावों में अधिकतर सीटें जीतकर सत्ता में वापसी की उम्मीद बनाए हुए है, वहीं भाजपा अधिकांश सीटों पर जीत दर्ज कर सत्ता बचाने की कोशिश में जुटी है।  कांग्रेस छोड़कर भाजपा में गए नेता चिंतित हैं कि कहीं भीतरघात में उनकी नैया न डूब जाए, क्योंकि उनके भाजपा में जाने से टिकट के दावेदार भाजपा नेताओं का भविष्य अंधकारमय हो गया है। उधर समझौते के अनुसार कांग्रेस छोड़कर भाजपा में आए सभी लोगों को टिकट मिलेगा। और स्थानीय नेताओं को साधकर ही यह उपचुनाव भाजपा जीत सकती है अन्यथा राह बड़ी कठिन दिखाई दे रही है। 


करीब चार माह पूर्व कुछ मंत्रियों और विधायकों के बगावत करने से प्रदेश की कांग्रेस सरकार गिर गई थी। प्रदेश में कांग्रेस को सत्ता दिलाने में महत्वपूर्ण योगदान देने वाले श्रीमंत ज्योतिरादित्य सिंधिया की उपेक्षा के कारण कांग्रेस की सत्ता से बिदाई हुई थी। सिंधिया के समर्थक विधायकों ने एकजुट होकर कांग्रेस से इस्तीफा दे दिया और बाद में भाजपा की सदस्यता ग्रहण कर ली। इसके बाद शिवराजसिंह चौहान फिर मुख्यमंत्री बने और भाजपा की बल्ले-बल्ले हो गई। अब इन विधायकों के इस्तीफों के कारण इनकी सीटों पर उपचुनाव होने हैं। कुछ विधायकों के निधन और बाद में कांग्रेस के कुछ विधायकों के इस्तीफों के कारण इन सीटों पर होने वाले उपचुनाव के कारण राजनीतिक सरगर्मी बढ़ गई है। कांग्रेस जहां इन चुनावों में अधिकतर सीटें जीतकर सत्ता में वापसी की उम्मीद बनाए हुए है, वहीं भाजपा अधिकांश सीटों पर जीत दर्ज कर सत्ता बचाने की कोशिश में जुटी है।


प्रदेश का मतदाता मौन है। वह सब कुछ देख और समझ रहा है। उसने तो कांग्रेस को सरकार बनाने के लिए बहुमत दिया था, लेकिन कांग्रेस के कुछ नेताओं की अहम की लड़ाई में उनके हाथ से सत्ता फिसल गई। कुछ मंत्रियों के बयान अहंकार की पराकाष्ठा तक पहुंच गए थे। और इन्हीं सब बातों ने सत्ता का खेल बिगाड़ दिया और किसानों की समस्या उठाने वाले ज्योतिरादित्य सिंधिया को यह बयान सुनना पड़ा कि आप भी सड़क पर उतर जाओ। और वे सड़क पर तो नहीं उतरे, मुख्यमंत्री को ही कुर्सी से उतार दिया। इसके बाद अब उपचुनाव में भी सिंधिया पर ही सारा दारोमदार है कि अधिकांश सीटों पर उनके समर्थक ही जीतना चाहिए।


उधर कांग्रेस छोड़कर भाजपा में गए नेता चिंतित हैं कि कहीं भीतरघात में उनकी नैया न डूब जाए, क्योंकि उनके भाजपा में जाने से टिकट के दावेदार नेताओं का भविष्य अंधकारमय हो गया है। उधर समझौते के अनुसार कांग्रेस छोड़कर भाजपा में आए सभी लोगों को टिकट मिलेगा। और स्थानीय नेताओं को साधकर ही यह उपचुनाव भाजपा जीत सकती है अन्यथा राह बड़ी कठिन दिखाई दे रही है। दरअसल प्रदेश की सत्ता में वापसी करने के बाद भाजपा चाहती है कि सरकार पूरी तरह से मजबूत स्थिति में पहुंच जाए, जिससे सरकार पर किसी तरह का कोई दबाव नहीं रहे। गौरतलब है कि भाजपा के अभी 107 विधायक हंै। उपचुनाव के बाद उसे बहुमत के लिए 116 विधायकों की जरूरत रहेगी।