- आलोक दुबे
प्रधान संपादक
सरकारी कर्मचारियों पर कोरोना का असर तो नहीं दिखाई दे रहा, लेकिन प्रायवेट सेक्टर और छोटी-मोटी नौकरी करने वालों तथा श्रमिकों से लॉकडाउन का असर पूछो तो उनके आंसू आ जाएंगे। इस समय कोई कर्ज में डूब गया है तो कोई मकान गिरवी रख कर परिवार का पालन-पोषण कर रहा है। देश की अर्थव्यवस्था पर बात करना सरल है, लेकिन परिवार का पालन-पोषण करना उतना ही कठिन है। एसी रूम में बैठकर योजनाएं बनाना अलग बात है, लेकिन श्रमिकों और मजदूरों को दो वक्त की रोटी मिलना अलग बात है।
देश में कोरोना महामारी को फैलने से रोकने के लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने लॉकडाउन लगाया था। कई चरणों में लगाए गए लॉकडाउन के बाद भी यह महामारी नहीं थम पाई और अभी भी जारी है। रोज हजारों संक्रमित मिल रहे हैं। अभी तक हजारों संक्रमितों की मौत हो चुकी है। फिर लॉकडाउन लगाने से क्या फायदा मिला, यह किसी की समझ में नहीं आ रहा।
लॉकडाउन के कारण देश की अर्थव्यवस्था चौपट हो गई। लाखों लोगों की नौकरियां छिन गईं। लोगों के रोजगार-धंधे ठप हो गए, महानगरों में काम-धंधे बंद होने से लाखों लोगों ने अपने गांवों की ओर पलायन किया, लेकिन वहां भी रोजगार की उचित व्यवस्था नहीं होने के कारण उन्हें फिर से महानगरों की ओर पलायन करना पड़ रहा है। आय नहीं होने से उनकी क्रय शक्ति घट गई और बाजार में मांग कमजोर हो गई, जिससे व्यापार-व्यवसाय प्रभावित हुआ।
लॉकडाउन के समय अधिकांश उद्योग-धंधे बंद होने के कारण उत्पादन ठप हो गया। बाद में उद्योग-धंधे चालू तो हुए, लेकिन कठिन शर्तों के कारण वे भी पूरी क्षमता से उत्पादन नहीं कर पा रहे। यही नहीं, श्रमिकों के पलायन के कारण भी उद्योग-धंधों में उनकी कमी महसूस की जा रही है।
छोटे कल-कारखाने भी कच्चे माल और श्रमिकों की कमी का सामना कर रहे हैं, जिससे वे बड़े उद्योग धंधों को माल की आपूर्ति नहीं कर पा रहे। उद्योग-धंधों की चेन छह महीने बाद भी नहीं जुड़ पाई। यहां तक कि कई राज्यों में लोक परिवहन सेवा भी सामान्य रूप से नहीं चल रही। मप्र की बात करें तो यहां अभी भी बसें नहीं चल रहीं। साथ ही देश में सभी ट्रेनें आज छह महीने बाद भी पटरी पर नहीं लौट सकीं। कोरोना को रोकने के लिए किए गए प्रयास फेल होते नजर आ रहे हैं। कोरोना तो नहीं थमा, देश की अर्थव्यवस्था बुरी तरह जरूर प्रभावित हो रही है। कोरोना काल और उसके बाद भी सरकार ने सस्ते दामों में गरीबों को अनाज उपलब्ध करा दिया है, वे भूखों नहीं मरेंगे, लेकिन पेट भरने के अलावा भी व्यक्ति को अनेक कार्य होते हैं, जिनमें बच्चों की पढ़ाई व अन्य खर्च होते हैं, उनकी पूर्ति के लिए श्रमिक अपने घर से महानगरों की ओर पलायन करते हैं। अपने बच्चों के उज्जवल भविष्य के लिए वे महानगरों में खुले आसमान के नीचे झोपड़ी में जीवन बिताते हैं। इसलिए सरकार कोरोना काल में प्रभावित उद्योग धंधों को राहत प्रदान करे।