भोपाल। मध्य प्रदेश के विशेष पिछड़े आदिवासी किसानों को जैविक खेती के लिए खाद सहित अन्य सामग्री देने के नाम पर सौ करोड़ रुपए की योजना में बड़ी गड़बड़ी उजागर हुई है। इस गड़बड़ी के बाद मामला विधानसभा में उछला और तत्कालीन विधानसभा अध्यक्ष एनपी प्रजापति ने जांच के लिए विधान सभा समिति गठित की। समिति की बैठक भी हुई और आदिम जाति कल्याण प्रमुख सचिव दीपाली रस्तोगी को जांच कर प्रतिवेदन विधानसभा को सौंपने के निर्देश भी जारी किए गए। 9 महीने का समय बीत गया। अभी तक आदिम जाति कल्याण विभाग ने अपनी रिपोर्ट विधानसभा को नहीं सौंपी। सूत्रों की मानें तो गड़बड़ी को छुपाने के लिए लीपापोती शुरू हो गई है, क्योंकि इसमें दो की भूमिका संदेह के दायरे में है।
वर्ष 2016 -17 और 2018 -19 में आदिम जाति कल्याण विभाग को किसान कल्याण विभाग द्वारा आदिवासियों को जैविक खेती प्रोत्साहन से उनकी आर्थिक स्थिति सुधारने विशेष योजना के अंतर्गत 90 करोड़ रुपये की तथा अति पिछड़े आदिवासी जैसे बैगा, सहारिया, भारिया के लिए 20 करोड़ की जैविक खेती योजना स्वीकृत की गई।
भारत सरकार ने इस प्रस्ताव को दो घटकों के साथ पहला यह कि इस गाड़ी की बायो कंपोस्ट यूनिट निर्माण और दूसरा बायोलॉजिकल नाइट्रोजन हार्वेस्ट प्लांटिंग सेस्बनिया रोस्ट्राटा बीज के लिए स्वीकृत की। भारत सरकार ने 73 करोड़ सेस्बनिया रोस्ट्राटा बीज सप्लाई के लिए और 37 करोड़ बायो कंपोस्ट यूनिट निर्माण के लिए दिए किंतु प्रदेश सरकार के नौकरशाहों ने भारत सरकार द्वारा स्वीकृत योजना के घटकों को खुद ही बिना परमीशन के बदल दिया। यही नहीं, नौकरशाहों ने हाल मेल करने के लिए अपने सुविधानुसार भारत सरकार की स्वीकृत योजनाओं को चार घटकों की योजना में परिवर्तित कर दिया।
एक वर्ष तक बैक डेट में कराते रहे आपूर्ति
आदिवासी किसानों को उन्नत किस्म के खेत पर उगाने हरी खाद सेस्बनिया रोस्ट्राटा बीज दिए जाने हेतु परियोजना पारित कराई गई। दिलचस्प पहलू यह है कि इस प्रजाति के ढेचा बीज का उत्पादन भारत में कहीं भी प्रमाणिक रूप से नहीं होता है। कृषि विभाग के अधिकारियों ने मार्कफेड से स्वीकृत ब्रांड ‘सोना’ की जगह घटिया ब्रांड सुरक्षा अनुबंध पत्र में काट-छांट करके सप्लाई करा दिया। दिलचस्प पहलू यह है कि तत्कालीन कृषि उत्पादन आयुक्त की अध्यक्षता में गठित समिति ने मारपीट की दरें 27 मई 2017 से पूरी तरह से निरस्त करने के निर्देश और आदेश भी प्रसारित किए थे। इसके बावजूद भी एमपी एग्रो के अधिकारियों की मिलीभगत से इस योजना में एक वर्ष तक बैक डेट में आपूर्ति होती रही, इस प्रकार अमानक सामग्री प्रदाय कर शासन को करोड़ों रुपए की क्षति पहुंचाई गई।
इनकी भूमिका रही संदेह के दायरे में
भारत सरकार की योजनाओं को परिवर्तित करने में वरिष्ठ नौकरशाह अशोक शाह तत्कालीन प्रमुख सचिव आदिम जाति कल्याण विभाग की भूमिका मुख्य रूप से रही। भारत सरकार की स्वीकृत योजना के मूल स्वरूप में छेड़छाड़ करने से पहले अशोक शाह ने केंद्र से भी अनुमति लेने की आवश्यकता नहीं समझी। इसी प्रकार से योजना के क्रियान्वयन की जिम्मेदारी किसान कल्याण विभाग की थी। योजना के क्रियान्वयन में बड़े पैमाने पर गड़बड़ी की गई। इस गड़बड़ी में एमपी एग्रो के अधिकारियों की भी संलिप्तता रही।
जमीन पर कोई काम नहीं हुआ
सूत्रों के मुताबिक आदिम जाति कल्याण विभाग ने 20 जिलों के आदिवासी और विशेष पिछड़ी जनजाति बैगा, सहरिया व भारिया किसानों को कोदो, कुटकी, ज्वार, बाजरा के उत्पादन में सहयोग और प्रोसेसिंग, पैकेजिंग व मार्केटिंग के लिए सौ करोड़ रुपए कृषि विभाग को वर्ष 2017-18 में दिए थे। विभाग का मकसद साफ था कि जैविक खेती करने वाले आदिवासी किसानों को उन्नत खेती के लिए प्रोत्साहित किया जाए और उनके लिए खेती लाभ का सौदा बने। कृषि विभाग के परियोजना संचालक (आत्मा) ने प्रोसेसिंग, पैकेजिंग और हर जिले के ब्रांडनेम उत्पाद के क्षेत्र में कोई काम नहीं किया और न ही राशि खर्च की। सौ करोड़ रुपए से 14 जिले के लिए लक्ष्य तय किए गए, लेकिन जमीन पर कोई ठोस काम नहीं हुआ। इसमें अधिकांश किसानों को न तो खाद मिली और न ही कोई अन्य सामग्री। जिन्हें खाद मिली थी तो उसमें राख, मिट्टी और तरल पदार्थ के नाम पर पानी टिका दिया गया।
कांग्रेस विधायक ने उजागर की गड़बड़ी
विधानसभा में फुंदेलाल सिंह मार्को ने ध्यानाकर्षण के जरिए इस मुद्दे को उठाते हुए आरोप लगाया कि राशि की बंदरबांट की गई। कागजों में लीपापोती कर आदिवासियों के नाम पर भ्रष्टाचार को अंजाम दिया गया। आदिम जाति कल्याण मंत्री ओमकार सिंह मरकाम ने विधायकों के आरोपों का साथ देते हुए पूरी योजना को कागजी करार दिया था। मामले की गंभीरता को देखते हुए अब कृषि विभाग ने सात विधायक और कृषि व आदिम जाति कल्याण के अधिकारियों की कमेटी बनाकर जांच कराने का फैसला किया है। कमेटी की बैठक भी हो गई किंतु अभी तक रिपोर्ट विधानसभा को नहीं सौंपी गई।