बाघों का कब्रिस्तान बनता जा रहा है बांधवगढ़


भारत सरकार हो चाहे राज्य सरकार या फिर सर्वोच्च न्यायालय चाहे राष्ट्रीय बाघ प्राधिकरण विभाग क्यों ना हो वन्य प्राणियों के प्रति कितना भी ठोस कानून वह गाइडलाइन क्यों न बना लें, किंतु शायद यह कानून बांधवगढ़ पार्क प्रबंधन के लिए खिलौना है। यह मामला जब प्रकाश में आया कि वर्तमान क्षेत्र संचालक बांधवगढ़ के कार्यकाल में लगभग 8 से 10 बाघों की मौत संदिग्ध परिस्थितियों में हुई जिसे प्रबंधन ने आपसी फाइट बता कर मामला रफा-दफा कर दिया। बांधवगढ़ नेशनल पार्क संचालक विंसेंट रहीम सारी गाइडलाइन को दरकिनार कर अपनी मनमर्जी से पार्क का संचालन कर रहे हैं। यही वजह है कि बांधवगढ़ नेशनल पार्क बाघों की कब्रिस्तान बनता जा रहा है।


टी- 42 बाघिन क्यों छोड़ी अपना इलाका
बांधवगढ़ टाइगर रिजर्व के अंदर कभी ताला प्रीमियम जोन की श्रेणी में आता था जिसमें बाघों के दीदार काफी मात्रा में होते थे किंतु आज विगत दो-तीन वर्षों से बांधवगढ़ ताला जोन लगभग बाघ विहीन पथ की ओर बढ़ रहा है। इसका कारण ताला जोन में काफी वाहन जाने लगे थे और वाहनों के कारण बाघों के ऊपर काफी दबाव बना। इसके कारण बाघ अपना इलाका छोड़कर अन्य क्षेत्रों में चले गए। उसी तरह से मगधी जोन में तीन बाघिन अपने शावकों के साथ दिखने लगी। बाघिनों के ऊपर फिल्म बनाने और गाड़ी वालों के द्वारा पर्यटकों को काफी नजदीक और अच्छे तरीके से देखने-दिखाने का सिलसिला शुरू हुआ। इसके संबंध में कई बार क्षेत्र संचालक व एनटीसीए और प्रधान मुख्य वन संरक्षक वन्य प्राणी भोपाल को जानकारी भी दी गई थी। बाघों की हो रही मौत के मामले को एनटीसीए ने गंभीरता से लेते हुए कई पत्र भी प्रधान मुख्य वन संरक्षक वन्य प्राणी को लिखे। यही नहीं, एनटीसीए ने पीसीसीएफ वाइल्डलाइफ और बांधवगढ़ पार्क प्रबंधन को गाइड लाइन में जारी निर्देशों का पालन कराने हेतु पत्र जारी किया, किंतु इन पत्रों का कोई भी पालन नहीं हो रहा है। इसके दुष्परिणाम के रूप में बाघों की मौत हो रही है। बाघिन व शावक के ऊपर काफी पर्यटन के वाहनों का व पर्यटन भीड़-भाड़ का दबाव पड़ने लगा था। बाघिन अपने शावकों के साथ इलाका बदलकर रहने लगी। फिर भी प्रबंधन ने मामलों को गंभीरता से नहीं लिया।


बाघों की मौत का सच
विगत दिनांक 17 अक्टूबर 20 बांधवगढ़ टाइगर रिजर्व बाघिन नंबर टी-42 धामोखर रेंज के अंतर्गत महामन ग्राम मगधी कोर क्षेत्र से सटे वफर क्षेत्र में अपने एक शावक के साथ मृत पाई गई। मृत बाघिन कई माह से महामन ग्राम के समीप रहती थी, जो पार्क प्रबंधन की निगरानी में थी। जब अक्टूबर 20 में पर्यटन चालू हुआ, तब पर्यटकों को सही तरीके से बाघ नहीं दिख रहा था। स्टेकहोल्डर्स द्वारा क्षेत्र संचालक बांधवगढ़ के निर्धारित मीटिंग माह के दूसरे बुधवार की मीटिंग में बोला गया कि बाघ नहीं दिख रहा है। रूट सिस्टम फ्री किया जाए। वह मगधी जोन में शावक के साथ देखने वाली बाघिन की महामन ग्राम के पास विचरण कर रही है, जिसे हाथियों से घेराबंदी कर पर्यटन क्षेत्र में लाया जाए। क्षेत्र संचालक द्वारा अपनी वाह-वाही लूटने के लिए वाइल्डलाइफ के सभी नियमों को दरकिनार करते हुए रूट सिस्टम फ्री कर दिया गया। बाघिनों व शावकों के पीछे 4 से 5 हाथी लगा दिया गया। बाघिन व शावक को पर्यटन क्षेत्र में लाने के लिए जिसके दौरान बाघिन व शावक की मौत संदिग्ध परिस्थितियों में हुई।


बाघिन और शावक की मौत पर शुरू हुई जांच
बाघिन और शावक की संदिग्ध मौत की जांच शुरू हो गई है। पार्क प्रबंधन भले ही बाघिन की मौत को आपसी संघर्ष बता रहा हूं किंतु परिस्थितियां यह संकेत दे रही है कि बाघिन और शावक का शिकार हुआ है। फील्ड से मिली जानकारी के अनुसार पार्क के संचालक विंसेंट रहीम के बांधवगढ़ आने के बाद गांव वालों और प्रबंधन के बीच दूरियां बढ़ती जा रही हैं। शंका व्यक्त की जा रही है कि गांव वालों के असहयोगात्मक रवैया के कारण बाघों के शिकार हो रहे हैं।


अनट्रेंड स्टॉप और पेट्रोलिंग की कमी
बांधवगढ़ नेशनल पार्क में संचालक से लेकर रेंजर तक स्थानांतरित कर दिए गए हैं। जिन्हें पदस्थ किया गया है, वे अनट्रेंड है। उन्हें वन्य-प्राणी का प्रशिक्षण भी नहीं दिया गया है। जिन रेंजर और डिप्टी रेंजरों की पदस्थापना की गई है, वे पेट्रोलिंग नहीं कर रहे हैं। पेट्रोलिंग नहीं करने की वजह से ही पिछले महीने दो सांपों की भूख से मौत हो गई। पर प्रबंधन ने दलील दी कि उसकी मां शावकों को छोड़कर कहीं चली गई थी। के कारण शावकों की असमय मौत हो गई। इसके पहले बांधवगढ़ पार्क प्रबंधन ने ही बिन मां के तीन शावकों को पाल-पोस कर बड़ा किया था। तब पार्क के संचालक मृदुल पाठक थे।